Friday, September 2, 2016

जहाँ दीपक से काजल नहीं, केसर बनती है : श्री आई माता

 

 आई माता जी की अखंड ज्योति











जहाँ दीपक से काजल नहीं,केसर बनती है : श्री आई जी (श्री आई माता जी)



जोधपुर शहर के बिलाडा गावँ में नवदुर्गा अवतार श्री आई माता जी का मंदिर हैं। यह पश्चिमी राजस्थान एक का सुप्रसिद्ध मंदिर है जहाँ पूरे भारत से लोग दर्शनों के लिए आते हैं। बिलाड़ा स्थित यही वो मंदिर है जहाँ विश्व का अनोखा एवं अद्वितीय चमत्कार “अखंड केसर ज्योत” है। माता सिरवी समाज की आराध्य देवी है. वैसे तो इस मंदिर का एक-एक भाग दर्शनीय है, फिर भी समझने की दृष्टि से विवरण प्रस्तुत है-
अखंड केसर ज्योत- यह “अखंड केसर ज्योत” पिछले 500 से भी अधिक वर्षों से लगातार जल रही है और इसकी लौ से काजल के स्थान पर केसर प्रकट होता है जो कि मंदिर में माताजी की उपस्थिति का अकाट्य प्रमाण है।
आई माता जी की झोपड़ी- मंदिर परिसर के प्रथम तल पर आई माताजी की झोपड़ी को संरक्षित किया गया है। यह वही झोपड़ी है जहाँ आई माताजी निवास करते थे।
चित्र प्रदर्शनी- मंदिर के एक भाग में आई माताजी के संपूर्ण जीवन चरित्र को दर्शाने वाली भव्य प्रदर्शनी है। यहाँ आई माताजी के जीवन वृत्त एवं विभिन्न घटनाओं को अनेक चित्रों के माध्यम से समझाया गया हैं। प्रदर्शनी के अंतिम छोर पर परम भक्त दीवान रोहितदास की धूणी है जहाँ वे तपस्या करते थे।
संग्रहालय(म्यूजियम)- मंदिर परिसर के एक भाग में विशाल एवं भव्य संग्रहालय है। यहाँ सैंकडों साल पुरानी अनेकों अनेक वस्तुएं, बर्तन, वाद्य यन्त्र, पुराने दस्तावेज़, फर्नीचर , धातु की मूर्तियाँ, कलाकृतियाँ, पुरानी तकनीकी वस्तुएं आदि संरक्षित हैं। इसी म्यूजियम में अनेक प्रकार के हथियार, जैसे तलवारें, कटार, भाले, ढाल आदि भी संरक्षित किये गए हैं। वर्तमान दीवान श्री माधोसिंह जी के द्वारा करवाए गए इस संरक्षण को देखकर निश्चित रूप से आप कह उठेंगे- आश्चर्यजनक! अदभुत!! अतुल्य!!!
रावटी झरोखा- यह झरोखा मंदिर परिसर के द्वार के पास ऊपर बना हुआ है। यह पत्थर पर नक्काशी का सुन्दर उदाहरण है। इस झरोखे के अन्दर की तरफ कांच की अत्यंत सुन्दर कारीगरी की गयी है। बेजोड़ स्थापत्य कला युक्त यह झरोखा बरबस ही सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है।
वाड़ी महल-यह महल दीवान साहब का निवास स्थान है। इसका निर्माण लगभग 300 वर्षों पहले हुआ था। इस महल की बनावट भी बेजोड़ है। \
कैसे पहुचे:
बिलाडा क़स्बा जोधपुर से ४५ किमी दूर जयपुर-जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है. जयपुर, अजमेर, जोधपुर से यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है. सिरवी समाज की प्रमुख आराध्य देवी है.





 








Tuesday, April 14, 2015

श्री आईमाताजी की पवित्र नगरी बिलाड़ा, जोधपुर

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राजस्थान के जोधपुर जिला के बिलाड़ा गांव श्री आईमाताजी की पवित्र नगरी में राजस्थान के जोधपुर जिला के बिलाड़ा गांव में है जोधपुर से 80 किलोमीटर दूर जयपुर रोड पर गांव बिलाड़ा की सीमा में स्थित है। बिलाड़ा श्री आईमाताजी की पवित्र नगरी के रूप में संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है| मां आई माताजी का विश्व विख्यात मंदिर। यह भी एक तीरथ धाम है,
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दीवान श्री माधुसिंग जी साहब
 
नवदुर्गा अवतार श्री आईमाता जी ने गुजरात के अम्बापुर में अवतार लिया| अम्बापुर में कई चमत्कारों के पश्चात श्री आईमाता जी देशाटन करते हुए बिलाड़ा पधारे| लेकिन इसे केशर ज्योति मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं।यहाँ पर उन्होंने भक्तों को ११ गुण व सदैव सन्मार्ग पर चलने के सदुपदेश दिए। तथा ये ११ गुण आज भी लोग जानते है तथा उनके दिए हुऐ आशीर्वाद समज पालन करते है फिर एक दिन उन्होंने हज़ारों भक्तों के समक्ष स्वयं को अखंड ज्योति में विलीन कर दिया| इसी अखंड ज्योति से केसर प्रकट होता है जो आज भी मंदिर में माताजी की उपस्थिति का साक्षात् प्रमाण है। इसीलिए राजस्थान में सदियों से बिलाड़ा की महिमा का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया जाता है

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3आई माता जी का बडेर
बिलाड़ो बलिराज रौ, जठै आई जी रौ थान |
गंगा बहवे गौरवे, नित रा करौ सिनान ||
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लेकिन इसे केशर ज्योति मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं। यह पर अनेक श्रद्धालुओं का मत है किआई माताजी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह आज मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी फोटो की स्थापना की गई। यह विश्व का पहला मंदिर है जो यहाँ फोटो की पूजा होती है बताते हैं कि मां आई माताजी के आशीर्वाद से ही माधवसिंग जी दीवान बने जो पहले दीवाना हुए थे और बिलाड़ा,जोधपुर के दीवान कहलाये । मां के अनुयायी केवल राजस्थान में ही नहीं, देशभर में हैं, जो समय-समय पर यहां दर्शनों के लिए आते रहते हैं।
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संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार किया, मन में बहुत ही सकुन होता है जैसे हम सरवग में आ गए है । और यह पर सुबह चार बजे मंगला आरती और सायं सात बजे साज़ आरती के समय मंदिर देखने लायक होता है।
 
आई माता कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। जैसे मोहम्द गजनवी भारता को लूटता हुआ बिालरा आया था इस मंदिर को तथा यह की सपति लूटकर लेजाना चाहता था उसको यह से भगाया था उसको साक्षात दर्शन दिए मोहम्द गजनवी आई माता जी परनाम करके यह से चला गया था बताते हैं मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र के आई माता जी की गादी जिस पर आई माताजी विराजमान होते थे ।
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आई माता जी मंदिर तक पहुंचने के लिए जोधपुर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बिलाडा-जोधपुर रेल मार्ग है यह मंदिर। वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर अंदर धर्मशालाएं भी हैं। जो मंदिर की तरफ़ा से लोगो का विशेष ध्यान रखता है ।
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मां आई माता के मंदिरआने जाने वालों की मनोकामना पूरी होती है।

Friday, September 6, 2013

जय बाबे री सा


 Ramdevra Runicha Ri Shyam Ri Jay
जय बाबे री सा



रामदेवरा में प्रतिवर्ष भादवा सुदी दूज से भादवा सुदी एकादशी तक एक विशाल मेला भरता हैं. यह मेला दूज को मंगला आरती के साथ ही शुरू होता हैं. सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक इस मेले में शामिल होने व मन्नतें मांगने के लिए राजस्थान ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा,मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों से भी लाखों की तादाद में श्रद्धालुजन पहुंचते है.  


                               

कोई पैदल तो कोई यातायात के वाहनों के माध्यम से रामदेवरा पहुंचता है. रुणिचा पहुंचते ही वहा की छठा अनुपम लगती है. मेले के दिनों में "रुणिचा" नई नगरी बन जाता हैं. मेले के अवसर पर जम्में जागरण आयोजित होते हैं तथा भंडारों की भी व्यवस्था होती हैं.



मेले में कई किलोमीटर लम्बी कतारों में लग कर भक्तजन बाबा के जय-जयकार करते हुए दर्शन हेतु आगे बढ़ते हैं. इस मेले के अवसर पर पंचायत समिति एवं राज्य सरकार पूर्ण व्यवस्था करने में जुटी रहती हैं.



इस मेले के अतिरिक्त माघ माह में भी मेला भरता हैं. उसे "माघ मेला" कहा जाता है. जो लोग भादवा मेले की भयंकर भीड़ से ऊब जाते हैं वे "माघ मेले" में अवश्य शामिल होते है तथा मंदिर में श्रद्धाभिभुत होकर धोक लगाते है.



मेले का द्रश्य लुभावना, मनभावन, मनमोहक एवं सदभाव और भाईचारे का प्रतीक सा सभी को अनुभव होता है. सभी यात्रियों के मुख से एक ही संबोधन "जय बाबे री" निकलता प्रतित होता है.....http://www.meghwalsamaj.com

Sunday, October 28, 2012

Bilara City Bilada kalpavriksha the Shrine

Bilada kalpavriksha the Shrine




Located Bilada sacred tree "Kalpataru" and "Dewatru" is also known by the name. It is said that the tree was brought from heaven when the demon king Bali. Since then, thousands of centuries long past, but it is the same type of magical tree. This wondrous tree fulfills all wishes. Here is the main temple of Lord Shiva. Find a stalk ...
Reach to approximately 8-9 feet wide leaves and stems of the tree that characterizes this amazing once in a year, Shravan (Sawan) in the month of fall leaves. The rest of the 11-month dry tree remains the same. Another feature of the tree stem its many goddesses - gods embossed images appear naturally. Shravan (Sawan) every Monday of the month on the pilgrimage prayer - prayer is. Faithful away - come from far and worship of Lord Shiva.

Thursday, July 5, 2012

Meghwal History

Meghwal History



Indus Valley civilization in the history of India ancient Sshhytऐan, Mohanjoddo ancient civilizations like the rich get the remains and ancient sage of India, many texts have been found Jankahariyon Meghwal social origin and advancement. Society as well as morning memorable live by owner Goculdas Sadgrnthoan based on information from the one who created the society has known the details of cloud sage. The glorious history and traditions Meghwal sage is the official format. Mehऋhay north of India's history - the ruler of the western territory of the Sarsbg Sinrdhuhatie civilization and religion which in antiquity as the founder's Clothing Bottling, Kansiklah and architecture of the center was developed. Anchor format beginning of civilization in the world textile manufacturing Ah the inspiration of God, cloud sage cloud by Lord Shiva himself by getting through the cotton Biazaropn develop cotton cultivation was arranged. Which form the basis for the development of all world civilizations. All north - western territory of the empire was on the Mehऋhay followers and descendants. The democratic way in which people had grown where Amanwamatr was identical. But which Aryans came to India, many foreign clan was also, he settled in with his cleverness and muscle power was fragmented and people find them a |

Aivss for the whole of India to be scattered. As ruler of the Aryan community and all the resources had been established here as the owner and his Warahnashram Brahmani culture was imposed here. Mehऋhay find her lost in such a situation by the descendants of the Aryans were inferior status. In which all of today's current tribal, Dalit and backward people Theaarat including those established in the Aryan civilization favorable religion on here, Parmparayaean and rules, customs, etc. were given to maintain better than working hard labor in which people find previously settled Thopakar lows them began to be treated and the old time monster, snake, demon, Anary, monster, etc., saying his reputation was bad. Kings of the groups were asked the religion of wrongdoing. Looking at the types of degrees of history Mehऋhay should be proud descendants of their glorious past and the present system was imposed beliefs deny the Brahminical culture and Babasaheb Bhimrao Ambedkar Ramdev find God in Kaliyuga ideals set forth the find to execute their rights want to. To make a strong society Mehvansh Gokuladassji owner chef, who find Ghariebadass Maharaj Sant Meghwal community pride as India's ancient texts reveal the nature of the society's origin and development have told us our glorious past. And lows and we sacrificed Kuretioan St. deeds have shown the way toward Brne
Mehvansh History : - Mehzati find the origin and drainage master chef Gokuladassji Duamada (Ajmer) Meghwal through its search and writing in the service of society is presented as follows; of creation etc. of Srinarayan Nbhikamal Brahma, Brahma the creation by the will of Archane craze, Snanadan, eternal, Ssntkumar these four sages are generated but then the four Nashtika Brahmachari Brahma generated ten Mansi sons. Marechi, Atri Aangira, Pulasta, Pualah, Krtu, Hrgu, Ashisht, efficient, and Narada. Brahma the right part of your body by two bays Aswayamhuv Manu (male) and part balm Astrup (female) by generating the creation Methuni launched. Manu Aswayambhu Astrupo 2 sons - and 3 Kaneyaऐan Akuti Utthanpead and Priywarat, maternity, Deohuti occurred. Aswayambhu Akuti married the daughter of Manu Ruacinam sage, the efficient delivery of the Creator and Deohuti sage has Kardam. Kardam sage Kapil Muni who find creating digital made scripture. Kardam sage whose marriage was Kaneyaऐan 9: Art of Marechi, Anusuaya from the Atri, sage Aangira of trust, the Pulasty Ahavi sage, the speed of Pualah yoga Krtu, the reputation of Hrgu, by Arundhati Ashisht of and peace be with Arthven. Brahmaji woman's son called Arundhati Ashisht cloud of sage, power, etc. 100 son occurred. Thus, cloud sage's grandson Brahmaji run Mehvansh. Ashisht Suryvansh considered descendants of the sage. Description of the ten sons of Brahmaji Mansi is back from the sages who find them on the Neamanusar Gutr are still standing. These Brahmaji son, grandson and great-grandson Karmaanusar the property divided into four characters find | Shrimedhagwat comes a story that hung dynasty, a king of Mandhaato find, by the desire to sacrifice for the material to Heaven went to Maharishi and Ashisht thus asked to sacrifice. Ashishtji refused by saying that I do not like to sacrifice it. The hearing of the Ashishtji 100 sons to sacrifice to go and told him. Then he cursed the king hung Zwantha mistaking the word that you come to us is our teacher so you will be Chandaal, he was Chandaal. Then he went to sage Vishwamitra, Vishwamitra saw her Chandaal condition that state how it was your king. Trishank narrated his whole episode saying. Vishwamitra her very angry to hear this episode and find it to make the sacrifice Vishwamitra approved at the sacrifice of King Hung has invited all the Brahmins and their 100 sons sacrifice but not included in the Wiseman Ashisht other. By the Vishwamitra cursed them get to you Zavo Ashudratav. Descendants of the sage cursed him Ashisht cloud, etc. to achieve the 100 sons Ashudratav.
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मेघवंश इतिहास


मेघवंश इतिहास


मेघवंश इतिहास (meghwansh history)

मेघवंश इतिहास
भारतवर्ष के सभ्यता इतिहास में पुरातन सभ्यताऐं सिन्धु घाटी, मोहनजोदडो जैसी सम्पन्न सभ्यताओं के पुरातन प्राप्त अवशेषों एवं भारत के कई प्राचीन ऋषि ग्रंथों में मेघवाल समाज की उत्पत्ति एवं उन्नति की जानकारीयां मिली हैं. साथ ही समाज के प्रात: स्मरणीय स्वामी गोकुलदास जी द्वारा सदग्रंथों से प्राप्त जानकारी के आधार पर भी समाज के सृजनहार ऋषि मेघ का विवरण ज्ञात हुआ है. मेघवाल इतिहास गौरवशाली ऋषि परम्पराओं वाला तथा शासकीय स्वरूप वाला रहा है. मेघऋषि का इतिहास भारत के उत्तर-पश्चिमी भूभाग की सरसब्ज सिन्धुघाटी सभ्यता के शासक एवं धर्म संस्थापक के रूप में रहा है जो प्राचीनकाल में वस्त्र उद्दोग, कांस्यकला तथा स्थापत्यकला का विकसित केन्द्र रहा था. संसार में सभ्यता के सूत्रधार स्वरूप वस्त्र निर्माण की शुरू आत भगवान मेघ की प्रेरणा से स्वयं भगवान शिव द्वारा ऋषि मेघ के जरिये कपास का बिजारोपण करवाकर कपास की खेती विकसित करवाई गयी थी. जो समस्त विश्व की सभ्यताओं के विकास का आधार बना. समस्त उत्तर-पश्चिमी भूभाग पर मेघऋषि के अनुयायियों एवं वंशजों का साम्राज्य था. जिसमें लोगों का प्रजातांत्रिक तरीके से विकास हुआ था जहां पर मानवमात्र एकसमान था. लेकिन भारत में कई विदेशी कबीले आये जिनमें आर्य भी एक थे, उन्होंने अपनी चतुराई एवं बाहुबल से इन बसे हुये लोगों को खंडित कर दिया तथा उन लोगों |

सम्पूर्ण भारत में बिखर जाने लिये विवस कर दिया. चूंकि आर्य समुदाय शासक के रूप में एवं सभी संसाधनों के स्वामी के रूप में यहां स्थापित हो चुके थे उन्होंने अपने वर्णाश्रम एवं ब्राह्मणी संस्कृति को यहां थोप दिया था. ऐसी हालत में उनसे हारे हुये मेघऋषि के वंशजों को आर्योंद्वारा नीचा दर्जा दिया गया. जिसमें आज के वर्तमान के सभी आदिवासी, दलित एवं पिछडे लोग शामिल थेभारत में स्थापित आर्य सभ्यता वालों ने यहां पर अपने अनुकुल धर्म, परमपरायें एवं नियम, रिवाज आदि कायम कर दिये थे जिनमें श्रम सम्बन्धि कठिन काम पूर्व में बसे हुये लोगों पर थोपकर उनसे निम्नता का व्यवहार किया जाना शुरू कर दिया था तथा उन्हें पुराने काल के राक्षस, नाग, असुर, अनार्य, दैत्य आदि कहकर उनकी छवि को खराब किया गया. इन समूहों के राजाओं के धर्म को अधर्म कहा गया था. इस प्रकार इतिहास के अंशों को देखकर मेघऋषि के वंशजों को अपना गौरवशाली अतीत पर गौरवान्वित होना चाहिये तथा वर्तमान व्यवस्था में ब्राह्मणवादी संस्कृति के थोपी हुई मान्यताओं को नकारते हुये कलियुग में भगवान रामदेव एवं बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर के बताये आदर्शों पर अमल करते हुये अपने अधिकार प्राप्त करने चाहिये. समाज में मेघवंश को सबल बनाने के लिये स्वामी गोकुलदासजी महाराज, गरीबदास जी महाराज जैसे संत हुये हैं जिन्होंने मेघवाल समाज के गौरव को भारत के प्राचीन ग्रंथों से समाज की उत्पत्ति एवं विकास का स्वरूप उजागर कर हमें हमारा गौरवशाली अतीत बताया है. तथा हमें निम्नता एवं कुरीतियों का त्याग कर सत कर्मों की ओर बड़ने का मार्ग दिखाया है. मेघवंश इतिहास :- मेघजाति की उत्पत्ति एवं निकास की खोज स्वामी गोकुलदासजी महाराज डूमाडा (अजमेर) ने अपनी खोज एवं लेखन के जरिये मेघवाल समाज की सेवा में प्रस्तुत की है जो इस प्रकार है; सृष्टि के आदि में श्रीनारायण के नाभिकमल से ब्रह्मा, ब्रह्मा ने सृष्टि रचाने की इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सन्तकुमार इन चार ऋषियों को उत्पन्न किया लेकिन ये चारों नैष्टिक ब्रह्मचारी रहे फिर ब्रह्मा ने दस मानसी पुत्रों को उत्पन्न किया. मरीचि, अत्रि अंगिरा, पुलस्त्व, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्ट, दक्ष, और नारद. ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो खण्ड करके दाहिने भाग से स्वायम्भुव मनु (पुरूष) और बाम भाग से स्तरूपा (स्त्री) को उत्पन्न करके मैथुनी सृष्टि आरम्भ की. स्वायम्भु मनु स्तरुपा से 2 पुत्र - उत्तानपाद और प्रियव्रत तथा 3 कन्याऐं आकुति, प्रसूति, देवहूति उत्पन्न हुई. स्वायम्भु मनु की पुत्री आकुति का विवाह रूचिनाम ऋषि से, प्रसूति का दक्ष प्रजापति से और देवहुति का कर्दम ऋषि से कर दिया. कर्दम ऋषि के कपिल मुनि पैदा हुये जिन्होंने सांख्य शास्त्र बनाया. कर्दम ऋषि के 9 कन्याऐं हुई जिनका विवाह: कला का मरीचि से, अनुसूया का अत्रि से, श्रद्धा का अंगिरा ऋषि से, हवि का पुलस्त्य ऋषि से, गति का पुलह से, योग का क्रतु से, ख्याति का भृगु से, अरुन्धति का वशिष्ट से और शांति का अर्थवन से कर दिया. ब्रह्माजी के पुत्र वशिष्ट ऋषि की अरुन्धति नामक स्त्री से मेघ, शक्ति आदि 100 पुत्र उत्पन्न हुये. इस प्रकार ब्रह्माजी के पौत्र मेघ ऋषि से मेघवंश चला. वशिष्ट ऋषि का वंश सूर्यवंश माना जाता है. ब्रह्माजी के जिन दस मानसी पुत्रों का वर्णन पीछे किया गया है उन ऋषियों से उन्हीं के नामानुसार गौत्र चालू हुये जो अब तक चले रहे हैं. ब्रह्माजी के ये पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र ही गुण कर्मानुसार चारों वर्णों में विभाजित हुये| श्रीमदभागवत में एक कथा आती है कि मान्धाता के वंश में त्रिशंकु नामक एक राजा हुये, वह सदेह स्वर्ग जाने के लिये यज्ञ की इच्छा करके महर्षि वशिष्ट के पास गये और इस प्रकार यज्ञ करने के लिये कहा. वशिष्टजी ने यह कहकर इन्कार कर दिया कि मुझे ऐसा यज्ञ कराना नहीं आता. यह सुनकर वह वशिष्टजी के 100 पुत्रों के पास जाकर उनसे यज्ञ करने को कहा. तब उन्होंने उस राजा त्रिशंकु को श्राप दिया कि तू हमारे गुरू का वचन झूंठा समझकर हमारे पास आया है इसलिये तू चांडाल हो जायेगा, वह चांडाल हो गया. फिर वह ऋषि विश्वामित्र के पास गया, विश्वामित्र ने उसकी चांडाल हालत देखकर कहा कि हे राजा तेरी यह दशा कैसे हुई. त्रिशंक ने अपना सारा वृतान्त कह सुनाया. विश्वामित्र उसका यह वृतान्त सुनकर अत्यन्त क्रोधित हुये और उसका वह यज्ञ कराने की स्वीकृति दे दी विश्वामित्र ने राजा त्रिशंकु के यज्ञ में समस्त ब्राह्मणों को आमंत्रण किया मगर वशिष्ट ऋषि और उनके 100 पुत्र यज्ञ में सम्मिलित नहीं हुये. इस पर विश्वामित्र ने उनको श्राप दिया कि तुम शूद्रत्व को प्राप्त हो जावो. उनके श्राप से वशिष्ट ऋषि की सन्तान मेघ आदि 100 पुत्र शूद्रत्व को प्राप्त हो गये|

Mehvansh History

Meghwal History



Indus Valley civilization in the history of India ancient Sshhytऐan, Mohanjoddo ancient civilizations like the rich get the remains and ancient sage of India, many texts have been found Jankahariyon Meghwal social origin and advancement. Society as well as morning memorable live by owner Goculdas Sadgrnthoan based on information from the one who created the society has known the details of cloud sage. The glorious history and traditions Meghwal sage is the official format. Mehऋhay north of India's history - the ruler of the western territory of the Sarsbg Sinrdhuhatie civilization and religion which in antiquity as the founder's Clothing Bottling, Kansiklah and architecture of the center was developed. Anchor format beginning of civilization in the world textile manufacturing Ah the inspiration of God, cloud sage cloud by Lord Shiva himself by getting through the cotton Biazaropn develop cotton cultivation was arranged. Which form the basis for the development of all world civilizations. All north - western territory of the empire was on the Mehऋhay followers and descendants. The democratic way in which people had grown where Amanwamatr was identical. But which Aryans came to India, many foreign clan was also, he settled in with his cleverness and muscle power was fragmented and people find them a |

Aivss for the whole of India to be scattered. As ruler of the Aryan community and all the resources had been established here as the owner and his Warahnashram Brahmani culture was imposed here. Mehऋhay find her lost in such a situation by the descendants of the Aryans were inferior status. In which all of today's current tribal, Dalit and backward people Theaarat including those established in the Aryan civilization favorable religion on here, Parmparayaean and rules, customs, etc. were given to maintain better than working hard labor in which people find previously settled Thopakar lows them began to be treated and the old time monster, snake, demon, Anary, monster, etc., saying his reputation was bad. Kings of the groups were asked the religion of wrongdoing. Looking at the types of degrees of history Mehऋhay should be proud descendants of their glorious past and the present system was imposed beliefs deny the Brahminical culture and Babasaheb Bhimrao Ambedkar Ramdev find God in Kaliyuga ideals set forth the find to execute their rights want to. To make a strong society Mehvansh Gokuladassji owner chef, who find Ghariebadass Maharaj Sant Meghwal community pride as India's ancient texts reveal the nature of the society's origin and development have told us our glorious past. And lows and we sacrificed Kuretioan St. deeds have shown the way toward Brne
Mehvansh History : - Mehzati find the origin and drainage master chef Gokuladassji Duamada (Ajmer) Meghwal through its search and writing in the service of society is presented as follows; of creation etc. of Srinarayan Nbhikamal Brahma, Brahma the creation by the will of Archane craze, Snanadan, eternal, Ssntkumar these four sages are generated but then the four Nashtika Brahmachari Brahma generated ten Mansi sons. Marechi, Atri Aangira, Pulasta, Pualah, Krtu, Hrgu, Ashisht, efficient, and Narada. Brahma the right part of your body by two bays Aswayamhuv Manu (male) and part balm Astrup (female) by generating the creation Methuni launched. Manu Aswayambhu Astrupo 2 sons - and 3 Kaneyaऐan Akuti Utthanpead and Priywarat, maternity, Deohuti occurred. Aswayambhu Akuti married the daughter of Manu Ruacinam sage, the efficient delivery of the Creator and Deohuti sage has Kardam. Kardam sage Kapil Muni who find creating digital made scripture. Kardam sage whose marriage was Kaneyaऐan 9: Art of Marechi, Anusuaya from the Atri, sage Aangira of trust, the Pulasty Ahavi sage, the speed of Pualah yoga Krtu, the reputation of Hrgu, by Arundhati Ashisht of and peace be with Arthven. Brahmaji woman's son called Arundhati Ashisht cloud of sage, power, etc. 100 son occurred. Thus, cloud sage's grandson Brahmaji run Mehvansh. Ashisht Suryvansh considered descendants of the sage. Description of the ten sons of Brahmaji Mansi is back from the sages who find them on the Neamanusar Gutr are still standing. These Brahmaji son, grandson and great-grandson Karmaanusar the property divided into four characters find | Shrimedhagwat comes a story that hung dynasty, a king of Mandhaato find, by the desire to sacrifice for the material to Heaven went to Maharishi and Ashisht thus asked to sacrifice. Ashishtji refused by saying that I do not like to sacrifice it. The hearing of the Ashishtji 100 sons to sacrifice to go and told him. Then he cursed the king hung Zwantha mistaking the word that you come to us is our teacher so you will be Chandaal, he was Chandaal. Then he went to sage Vishwamitra, Vishwamitra saw her Chandaal condition that state how it was your king. Trishank narrated his whole episode saying. Vishwamitra her very angry to hear this episode and find it to make the sacrifice Vishwamitra approved at the sacrifice of King Hung has invited all the Brahmins and their 100 sons sacrifice but not included in the Wiseman Ashisht other. By the Vishwamitra cursed them get to you Zavo Ashudratav. Descendants of the sage cursed him Ashisht cloud, etc. to achieve the 100 sons Ashudratav.
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